हरमनप्रीत कौर: “हमने रुकावट तोड़ दी — अब जीत हमारी आदत बननी चाहिए”!

मध्यरात्रि में हरमनप्रीत कौर ने इतिहास रच दिया — एक ऐसी कप्तान, जिसने वर्षों की प्रतीक्षा और निराशा को पीछे छोड़ते हुए भारत की महिलाओं को विश्व चैंपियन बना दिया। इस जीत के बाद उनकी आंखों में आँसू थे, लेकिन उस आँसुओं में हार नहीं — बल्कि मुक्ति थी, एक नए युग की शुरुआत थी।

निर्णायक कैच पकड़ते ही हरमनप्रीत दौड़ पड़ीं — जैसे कल का कोई अस्तित्व ही न हो। बाकी खिलाड़ी जब जश्न मना रही थीं, वह कुछ कदम दूर खड़ी होकर उस पल को आत्मसात कर रही थीं — अपने जीवन के सबसे बड़े दृश्य को।

उन्होंने अपने “गुरुजी” अमोल मजूमदार के चरण छुए और फिर उन्हें गले लगाया — उस आलिंगन में वर्षों की मेहनत, दर्द और गर्व समाहित था। इसके बाद उन्होंने भारतीय महिला क्रिकेट की दो महान दिग्गजों — मिताली राज और झूलन गोस्वामी — को बुलाया और उनसे विश्व कप ट्रॉफी थमाने का आग्रह किया। जैसे ही दोनों ने कप उठाया, उनकी आंखें भी भीग गईं।

कप्तान हरमनप्रीत और उपकप्तान स्मृति मंधाना ने झूलन को गले लगाते हुए कहा — “दीदी, ये आपके लिए था।”

वह क्षण पूरे स्टेडियम के दिलों में हमेशा के लिए अंकित हो गया।

मैच के बाद हरमनप्रीत ने पोस्ट-मैच सेरेमनी में कहा कि यह जीत मंज़िल नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है — एक आदत की शुरुआत।

“यह बस शुरुआत है। हम इस दीवार को तोड़ना चाहते थे, और अब हमारी अगली योजना है — इसे आदत बनाना। हम इस पल का इंतज़ार कर रहे थे और अब यह हमारे सामने है। आगे बहुत बड़े मौके आने वाले हैं और हमें लगातार बेहतर होते रहना है। यह अंत नहीं है, यह शुरुआत है,” कप्तान ने कहा।

हरमनप्रीत के फैसलों में हमेशा सूझबूझ और दिल की सुनने का साहस रहा है — जैसे 1983 में कपिल देव ने विव रिचर्ड्स के खिलाफ मदन लाल को एक और ओवर देने का साहस दिखाया था।

रविवार को हरमनप्रीत को अपने दिल की आवाज़ ने कहा कि शैफाली वर्मा ही उनकी ट्रम्प कार्ड हैं।

“जब लौरा और सून बल्लेबाज़ी कर रही थीं, वे बहुत अच्छी लग रही थीं। मैंने शैफाली को देखा, और जिस तरह वह खेल रही थी, मुझे यकीन था — आज हमारा दिन है।”

“मेरे दिल ने कहा कि मुझे उसे एक ओवर देना चाहिए — और वही हमारा टर्निंग पॉइंट था। इसके बाद विपक्षी टीम घबरा गई, और वहीं हमने खेल अपने पक्ष में मोड़ लिया। सही समय पर दीप्ति आई और उन्होंने वो अहम विकेट झटके।”

शैफाली, जिसने अपने पूरे अंतरराष्ट्रीय वनडे करियर में सिर्फ 14 ओवर गेंदबाजी की थी, उस दिन दो बेहद अहम विकेट लेकर मैच पलट गईं।

हरमनप्रीत ने कहा — “जब वह टीम में आई, हमने उससे कहा कि हमें 2-3 ओवर चाहिए होंगे, तो उसने कहा — ‘अगर आप मुझे गेंद दोगे, तो मैं 10 ओवर डाल दूंगी।’ पूरा श्रेय उसे जाता है — उसका आत्मविश्वास, उसका रवैया कमाल का था। वह टीम के लिए हमेशा तैयार रहती है। सलाम है उसे।”

टीम की कप्तान ने यह भी बताया कि अमोल मजूमदार हमेशा उन्हें याद दिलाते रहते थे कि “कुछ बड़ा और अनोखा” करना है।

“अमोल सर हमेशा कहते थे — हमें कुछ खास करना है, किसी बड़ी घड़ी के लिए खुद को तैयार रखना है। इस जीत का श्रेय कोचिंग स्टाफ और बीसीसीआई को भी जाता है। हमने टीम में बहुत ज़्यादा बदलाव नहीं किए, बोर्ड ने हम पर भरोसा किया, हम पर निवेश किया — और आज उसी भरोसे का नतीजा हमारे हाथ में है।”

हरमनप्रीत और उनकी टीम ने न सिर्फ ट्रॉफी जीती — उन्होंने एक पीढ़ी की सीमाएं तोड़ीं। अब बाधा टूट चुकी है — अब जीत भारत की आदत बनेगी।