चेतेश्वर पुजारा ने 2018 की ऑस्ट्रेलिया सीरीज़ की जीत को बताया अपने करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि!

चेतेश्वर पुजारा से बेहतर कोई नहीं जानता कि बिना किसी पछतावे के अलविदा कहने का यही सही समय था, क्योंकि उन्होंने पिछले दो सालों से टेस्ट क्रिकेट नहीं खेला था।

रविवार को 37 वर्षीय पुजारा ने पेशेवर टेस्ट क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी। उन्होंने 103 टेस्ट मैचों में 7195 रन बनाए, जिसमें 19 शतक शामिल हैं, और उनका औसत 43 से अधिक रहा।

राजकोट में पत्रकारों से बात करते हुए पुजारा ने कहा – “कोई पछतावा नहीं है। मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि मैंने इतने लंबे समय तक भारतीय टीम के लिए खेला। बहुत कम खिलाड़ियों को यह अवसर मिलता है, इसलिए मैं अपने परिवार और सभी समर्थकों का आभारी हूँ।”

हाल ही में इंग्लैंड में हुई टेस्ट सीरीज़ के दौरान उन्होंने कमेंट्री करना शुरू किया और कहा कि उन्हें इसमें अपनी नई राह मिली है।

“मुझे खुशी है कि मैंने क्रिकेट को अलविदा कहने का फैसला लिया है, लेकिन साथ ही मैं खेल से जुड़ा रहूँगा। अब मैं खिलाड़ी नहीं रहूँगा लेकिन भारतीय टीम के मैच देखूँगा और कमेंट्री भी करूँगा। सम्मान यूँ ही जारी रहेगा।”

पुजारा ने 2010 में भारत के लिए डेब्यू किया और राहुल द्रविड़ के संन्यास (2012) के बाद लगभग एक दशक तक नंबर-3 स्थान संभाला।

उनके करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि 2018–19 की ऑस्ट्रेलिया सीरीज़ रही, जहाँ उन्होंने 1258 गेंदों का सामना करते हुए 521 रन बनाए और तीन शतक जड़े।

“मैदान पर कई शानदार पल आए लेकिन अगर मुझे किसी एक सीरीज़ को चुनना हो तो 2018 की ऑस्ट्रेलियाई सीरीज़ मेरे करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि और भारतीय टीम की भी सबसे बेहतरीन यादों में से एक है। यह सीरीज़ मेरे करियर की सबसे खास सीरीज़ रही।”

उन्होंने अपने डेब्यू को भी याद किया जब 2010 में बैंगलोर टेस्ट की दूसरी पारी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 72 रन बनाए थे।

“2010 में जब मैंने महेंद्र सिंह धोनी (माही भैया) की कप्तानी में डेब्यू किया, तो वह मेरे क्रिकेटिंग सफर का सबसे गर्व भरा पल था। ड्रेसिंग रूम में राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर, वीवीएस लक्ष्मण, वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर जैसे महान खिलाड़ी मौजूद थे, जिन्हें देखकर मैं बड़ा हुआ था। उस पल को मैं कभी नहीं भूल सकता।”

पुजारा ने अपनी मां रीना पुजारा को भी याद किया, जिनका 2005 में कैंसर से निधन हो गया था।

“मेरी मां हमेशा मेरे पिता से कहती थीं कि तुम अपने बेटे की चिंता मत करो, वह एक दिन भारत के लिए खेलेगा। उनकी बात सच हुई और मुझे पूरा विश्वास है कि वह आज बहुत गर्व महसूस कर रही होंगी। उन्होंने हमेशा मुझे यह सिखाया कि चाहे तुम कितने भी बड़े खिलाड़ी बनो, सबसे पहले एक अच्छे इंसान बनना ज़रूरी है। मैं आज भी उनकी बात याद करता हूँ।”

पुजारा ने अपने आध्यात्मिक गुरु श्री हरिचरण दास जी महाराज का भी धन्यवाद किया।

“मैं अपने आध्यात्मिक गुरु श्री हरिचरण दास जी महाराज का आभारी हूँ। उन्होंने मुझे सिखाया कि मानसिक रूप से शांत रहना और खेल पर ध्यान केंद्रित करना कितना ज़रूरी है, क्योंकि दबाव सिर्फ क्रिकेट में नहीं बल्कि जीवन में भी होता है। उन्होंने मुझे संतुलित और केंद्रित रहना सिखाया।”