अनिल कुंबले की छाया से लेकर अश्विन-जडेजा की प्रतिस्पर्धा तक: अमित मिश्रा के अंतरराष्ट्रीय करियर के दो चरण!

अमित मिश्रा के रुक-रुक कर चलने वाले अंतरराष्ट्रीय करियर के दो बड़े चरण रहे।

पहला चरण उस दबाव के साथ गुज़रा जब उन्हें महान अनिल कुंबले की जगह भरनी थी।

दूसरा चरण तब आया जब उन्हें रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा से कड़ी टक्कर मिली—एक ऑफ-स्पिनर और दूसरा बाएं हाथ का ऑर्थोडॉक्स स्पिनर, जो महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली की योजनाओं में पूरी तरह फिट बैठते थे।

22 टेस्ट मैचों में मिश्रा के 76 विकेट उनके असली हुनर का सही मूल्यांकन नहीं करते। उस वक्त टेस्ट बल्लेबाज़ी का खेल बदल चुका था। तेज़ लेग-ब्रेक और आकर्षक गूगली होने के बावजूद उन्हें अश्विन और जडेजा के बाद तीसरे विकल्प के तौर पर ही इस्तेमाल किया गया।

अपने संन्यास का ऐलान करने के बाद पीटीआई वीडियो से बातचीत में मिश्रा ने कहा, “यह बहुत निराशाजनक था। कभी आप टीम में होते, कभी बाहर। कभी प्लेइंग इलेवन में मौका मिलता, कभी नहीं। हां, मैं कई बार फ्रस्ट्रेट हुआ, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन फिर याद आता कि सपना भारत के लिए खेलना है। मैं टीम इंडिया का हिस्सा था, और करोड़ों लोग वहां पहुंचने के लिए मेहनत कर रहे हैं। मैं उन 15 खिलाड़ियों में से एक था, इसलिए पॉज़िटिव रहने की कोशिश की।”

उन्होंने कहा कि टीम से अंदर-बाहर होना मानसिक रूप से थका देने वाला था।

“जब भी मैं निराश हुआ, मैंने सोचा कि मुझे क्या सुधार करना चाहिए—फिटनेस, बल्लेबाज़ी या गेंदबाज़ी। मैंने हमेशा मेहनत की और जब भी भारत के लिए खेलने का मौका मिला, अच्छा प्रदर्शन किया। मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने कभी मेहनत से पीछे नहीं हटाया।”

मिश्रा लगातार अच्छा करते रहे, लेकिन हमेशा कोई और स्टार बनकर उभरता—जैसे रेड-बॉल क्रिकेट में अश्विन और जडेजा।

विडंबना यह रही कि मिश्रा का आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच 2017 में बेंगलुरु में इंग्लैंड के खिलाफ टी20 था, जहाँ उन्होंने 4 ओवर में 1/33 लिया। यह शानदार प्रदर्शन था, लेकिन उसी मैच में युज़वेंद्र चहल ने 6/25 लेकर सुर्खियां बटोरीं। इसके बाद मिश्रा फिर कभी भारत के लिए नहीं खेले, जबकि आईपीएल में वे 174 विकेट लेकर लीजेंड बन गए—जिसमें 2008 में पहला हैट्रिक भी शामिल है।

मिश्रा ने माना कि उनका टेस्ट कमबैक आईपीएल की वजह से हुआ।

“2008 में आईपीएल में ली गई हैट्रिक मेरे लिए डिफाइनिंग मोमेंट थी। उससे पहले मैं घरेलू क्रिकेट में हर सीज़न 35-45 विकेट ले रहा था, लेकिन टीम इंडिया में जगह नहीं मिल रही थी। उस हैट्रिक और 5 विकेट के मैच ने मेरा करियर बदल दिया। इसके बाद मैं लगातार टीम इंडिया में आया और मेरा टी20 करियर भी वहीं से शुरू हुआ।”

उन्होंने यह भी कहा कि अलग-अलग कप्तानों की अपनी पसंद होती है: “कुछ खिलाड़ी कप्तान के फेवरेट होते हैं। लेकिन फर्क नहीं पड़ता। आपको बस हर मौके पर खुद को साबित करना होता है।”

आईपीएल में मिश्रा को हमेशा भारतीय बल्लेबाज़ों को गेंदबाज़ी करना ज्यादा मुश्किल लगा।

“जब भी मैंने किसी बड़े भारतीय बल्लेबाज़ को आउट किया—जैसे सहवाग, रोहित शर्मा, युवराज, गंभीर या विराट—मुझे खास गर्व महसूस हुआ। विदेशी खिलाड़ी को आप स्किल से छका सकते हो, लेकिन भारतीय बल्लेबाज़ों को आउट करने पर अलग खुशी मिलती है।”

उन्होंने अपना टेस्ट डेब्यू याद किया, जब अनिल कुंबले ने मोहाली (2008) में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैच से पहले उन्हें बताया कि वह चोटिल हैं और मिश्रा को मौका मिलेगा।

उस मैच में मिश्रा ने डेब्यू पर 5 विकेट झटके और प्लेयर ऑफ द मैच बने।

संन्यास पर मिश्रा भावुक जरूर हुए लेकिन संतुष्ट भी।

“मैंने 25 साल क्रिकेट खेली—सचिन तेंदुलकर जैसे दिग्गजों के साथ, धोनी जैसे कप्तानों के अंडर, और रोहित जैसे स्टार्स के साथ। क्रिकेट ने मुझे सबकुछ दिया—सम्मान, पहचान और मकसद। अब धीरे-धीरे दूर हो रहा हूं, तो इमोशनल हूं लेकिन संतुष्ट भी।”

मिश्रा ने कहा कि भले ही उन्हें भव्य फेयरवेल नहीं मिला, लेकिन उन्हें कोई ग़म नहीं है।

“सबको बड़ा विदाई समारोह या प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं मिलता। मेरे लिए सबसे अहम यह है कि मैंने दिल से खेला, मेहनत की, और हर मौके पर प्रदर्शन किया। मुझे फैंस का प्यार और साथियों का सम्मान मिला—यही मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है।”