
भारतीय स्पिनर वरुण चक्रवर्ती का मानना है कि पावरप्ले ओवरों में जब गेंद नई और सख़्त होती है, तब स्पिनर्स को ट्रैक से ज्यादा मदद नहीं मिलती। इसके विपरीत, जब गेंद थोड़ी पुरानी और नरम हो जाती है और मैदान पर फील्ड फैला होता है, तब वे अपनी जादुई गेंदबाज़ी से असर दिखा पाते हैं।
पूरे टूर्नामेंट के दौरान चक्रवर्ती थोड़े बदकिस्मत रहे हैं क्योंकि उनकी गेंदबाज़ी पर कई कैच छूटे हैं। इसके बावजूद उनका इकोनॉमी रेट 5.85 रहा है और उन्होंने चार मैचों में चार विकेट झटके हैं।
तमिलनाडु के इस “मिस्ट्री स्पिनर” ने माना कि इस टूर्नामेंट में वह बैक-एंड ओवरों (पिछले ओवरों) में गेंदबाज़ी करते हुए ज्यादा सहज महसूस करते हैं।
वरुण बोले: “गेंद जितनी सख़्त होती है, स्पिनर के लिए उतनी ही मुश्किल होती है। स्पिनर के नज़रिए से कहूँ तो पावरप्ले या पावरप्ले के तुरंत बाद विकेट से ज़्यादा मदद नहीं मिलती। लेकिन जैसे-जैसे खेल आगे बढ़ता है और फील्ड फैलता है, तब गेंदबाज़ी आसान हो जाती है।”
उन्होंने कहा कि पावरप्ले में रन रोकने का विकल्प नहीं होता, वहां सिर्फ विकेट की तलाश करनी पड़ती है।
“पावरप्ले में मेरा सिर्फ एक ही लक्ष्य होता है—विकेट निकालना। बस उस एक गेंद की तलाश रहती है जो सही जगह गिरकर थोड़ी टर्न ले और बैटर से एज निकल जाए। यही मेरी टीम में भूमिका है।”
“अगर थोड़े रन भी चले जाएँ तो मुझे परवाह नहीं, मेरा लक्ष्य लगातार अटैक करना और विकेट निकालना रहता है।”
चक्रवर्ती ने यह भी कहा कि जैसे-जैसे गेंद पुरानी होती है, उनकी गेंदबाज़ी और असरदार हो जाती है— यहां तक कि बांग्लादेश के खिलाफ मैच में भी।
“शुरुआत में गेंद ज्यादा स्किड कर रही थी, लेकिन जैसे-जैसे गेंद पुरानी होती गई, मुझे विकेट से थोड़ी ज़्यादा मदद मिलने लगी,” वरुण ने कहा।